SUN,20 DEC
यरोप की सैर
यरोप की सैर रोड से करने का अलग ही मजा है। जहाँ बाकी दुनिया में कहीं भी आने जाने के लिये पानी जहाज या हवाई जहाज ,रेल से बदल -बदल कर आना जाना पड़ता है। वहीं यरोप में रोज सुबह एक देश से निकलो रात दूसरे देश में पहुँच जाओ। हमलोग को भी 1987 में यरोप जाने का मौका मिला।
इस बार लन्दन से लन्दन तक पूरा यरोप रोड से सफर करने का मजा लिये। लन्दन से पानी जहाजमें इंग्लिश चैनल क्रॉस कर बेल्जियम पहुंचे बस तैयार था।हमारा टूर शुरू हो गया। सुबह बेल्जियम में होटल से निकल कर घूमते -घूमते रात दूसरे देश पहुँच गये। स्विजरलैंड में स्नो का मजा लेते हुए बढ़ते गए।
वेनिस में गोंडोला तो इटली में पिज्जा ,पॉप का वेटिकन सिटी,पीसा का झुकता मीनार। हर रोज नया देश नया अनुवभ एक दम अलग मौसम सब कुछ नया।मोन्टोकार्लो में कैसीनो ,महल,कहीं चर्च,पेरिस का एफिल टावर हो या महल ,गार्डन सब बहुत ही खुबसूरत। हमारा लास्ट देश जर्मनी था। जर्मनी के हैम्बर्गसिटी में बर्गर का स्वाद लिये,फेयर भी देखने मिला । अब वापस लन्दन लौटना था। ट्रेन का टिकट ले तो लिये पर समझ नहीं आया लन्दन ट्रेन से कैसे पहुंचेंगे। उस समय इंग्लिश चैनेल जहाज से ही पार करना पड़ता था। अभी के जैसे पानी के अन्दर से पेरिस से लन्दन ट्रेन नहीं शुरू हुआ था। जब ट्रेन में बैठे तो फिर टीटी बताया रात को कौन तो स्टेशन में ट्रेन चेंज कर वहीं जहाज मिलेगी और जहाज में भी यही टिकट दिखाना होगा जो सुबह लन्दन पहुँच जाएगी। इतना अच्छा इंतजाम सेम रूट एक ही टिकट ट्रेन और जहाज एक ही प्लेटफॉर्म में एक से उतरो और दूसरे मे चढ़ जाओ। हमलोग को येसब साधन सीखना चाहिए।अच्छा है अब यूरोप में यूरो का चलन हो गया नहीं तो हमलोग को रोज मनी एक्सचेंज करना पड़ता था। अलग अलग कंट्री का डॉलर अलग।
अब लास्ट पड़ाव लन्दन में खुब घूमे।लन्दन पैलेस ,म्युजीयम ,म्युजीयम में कोहीनूर हीरा भी देखने मिला।लन्दन का चेंजिंग गार्ड , वैक्स म्यूजियम देखकर एकदम अचम्भित होना स्वभाविक था। पूरे यूरोप में चर्च बहुत ही सुन्दर सुन्दर देखने मिला। चर्च के अंदर का पेंटिंग बहुत ही उमदा था इतना पुराना आज भी रंग पक्का का पक्का ,वैसे ही चटक जरा भी ख़राब नहीं हुआ था। लन्दन घूम कर वापस अपने देश लौट आये।आराम से 15 -20 दिन में यूरोप टूर हो गया।
वेनिस में गोंडोला तो इटली में पिज्जा ,पॉप का वेटिकन सिटी,पीसा का झुकता मीनार। हर रोज नया देश नया अनुवभ एक दम अलग मौसम सब कुछ नया।मोन्टोकार्लो में कैसीनो ,महल,कहीं चर्च,पेरिस का एफिल टावर हो या महल ,गार्डन सब बहुत ही खुबसूरत। हमारा लास्ट देश जर्मनी था। जर्मनी के हैम्बर्गसिटी में बर्गर का स्वाद लिये,फेयर भी देखने मिला । अब वापस लन्दन लौटना था। ट्रेन का टिकट ले तो लिये पर समझ नहीं आया लन्दन ट्रेन से कैसे पहुंचेंगे। उस समय इंग्लिश चैनेल जहाज से ही पार करना पड़ता था। अभी के जैसे पानी के अन्दर से पेरिस से लन्दन ट्रेन नहीं शुरू हुआ था। जब ट्रेन में बैठे तो फिर टीटी बताया रात को कौन तो स्टेशन में ट्रेन चेंज कर वहीं जहाज मिलेगी और जहाज में भी यही टिकट दिखाना होगा जो सुबह लन्दन पहुँच जाएगी। इतना अच्छा इंतजाम सेम रूट एक ही टिकट ट्रेन और जहाज एक ही प्लेटफॉर्म में एक से उतरो और दूसरे मे चढ़ जाओ। हमलोग को येसब साधन सीखना चाहिए।अच्छा है अब यूरोप में यूरो का चलन हो गया नहीं तो हमलोग को रोज मनी एक्सचेंज करना पड़ता था। अलग अलग कंट्री का डॉलर अलग।
अब लास्ट पड़ाव लन्दन में खुब घूमे।लन्दन पैलेस ,म्युजीयम ,म्युजीयम में कोहीनूर हीरा भी देखने मिला।लन्दन का चेंजिंग गार्ड , वैक्स म्यूजियम देखकर एकदम अचम्भित होना स्वभाविक था। पूरे यूरोप में चर्च बहुत ही सुन्दर सुन्दर देखने मिला। चर्च के अंदर का पेंटिंग बहुत ही उमदा था इतना पुराना आज भी रंग पक्का का पक्का ,वैसे ही चटक जरा भी ख़राब नहीं हुआ था। लन्दन घूम कर वापस अपने देश लौट आये।आराम से 15 -20 दिन में यूरोप टूर हो गया।
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