कड़ाके की ठण्ड
इस साल ठण्ड जाने का नाम ही नहीं ले रहा है। देखते ही देखते मकर संक्रांत और पूस पूर्णिमा भी बीत गया। माघ का महीना भी लग गया लेकिन ठण्ड है की कम ही नहीं हो रहा है। कभी धुंध तो कहीं ओस का बून्द का जमना। बस कुन्नूर का मौसम का यही हाल है।
अब ठण्ड अधिक है तो अलाव जलाना तो बनता ही है। अलाव तापते -तापते बचपन में मुंशी प्रेमचंद की कहानी पूस की रात बरबस याद आ गई। कैसे नायक हल्कू और उसका कुत्ता जबरा पूस की कड़कड़ाती रात में खेत की रखवाली अलाव तापते हुए करता है ,और नील गाय खेत चर जाती है।
बच्चों की बड़े दिन की छुट्टी होने के कारन घर में रौनक हो गया था। दिन भर मौज मस्ती में बीत जाता है। कभी घुड़साल तो कभी हेलीकॉप्टर का प्रोग्राम कभी घूमने फिरने में कैसे दो महीना बीत गया पता ही नहीं चला। अब तो कुन्नूर की खट्टी -मीठी याद लेकर जाने का समय भी हो गया है। बच्चों की अगली छुट्टी का इंतजार करना होगा।
इस साल ठण्ड जाने का नाम ही नहीं ले रहा है। देखते ही देखते मकर संक्रांत और पूस पूर्णिमा भी बीत गया। माघ का महीना भी लग गया लेकिन ठण्ड है की कम ही नहीं हो रहा है। कभी धुंध तो कहीं ओस का बून्द का जमना। बस कुन्नूर का मौसम का यही हाल है।
अब ठण्ड अधिक है तो अलाव जलाना तो बनता ही है। अलाव तापते -तापते बचपन में मुंशी प्रेमचंद की कहानी पूस की रात बरबस याद आ गई। कैसे नायक हल्कू और उसका कुत्ता जबरा पूस की कड़कड़ाती रात में खेत की रखवाली अलाव तापते हुए करता है ,और नील गाय खेत चर जाती है।
बच्चों की बड़े दिन की छुट्टी होने के कारन घर में रौनक हो गया था। दिन भर मौज मस्ती में बीत जाता है। कभी घुड़साल तो कभी हेलीकॉप्टर का प्रोग्राम कभी घूमने फिरने में कैसे दो महीना बीत गया पता ही नहीं चला। अब तो कुन्नूर की खट्टी -मीठी याद लेकर जाने का समय भी हो गया है। बच्चों की अगली छुट्टी का इंतजार करना होगा।
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