प्रथम पुस्तक
विश्व भ्रमण 30 वर्षों में
कभी भी सोचे भी नहीं थे की हम कुछ भी लिखेगें। बाबा के जोश दिलाने पर अपने भ्रमण का संस्मरण लिखना शुरू किये। लिखते -लिखते एक पुस्तक का रूप ले लिया। बस क्या था बाबा अपने पब्लिसर को ही भेज दिए और वह छप कर भी आगया। अपने 30 वर्षो के भ्रमण का कुछ खट्टी -मीठी यादें ,कुछ अनुभव ,जो कुछ नया दिखा बस यही सब लिखे थे। राकेश आईडिया दिया इसका शीर्षक विश्व भ्रमण 30 वर्षों में लीखिए। बस इसी नाम से पुस्तक बन गया।
बाबा को बड़ा मन था की बाबा के जीते जी ये पुस्तक छप कर आजाये जिससे बाबा देख सके। बाबा के रहते पुस्तक आया ,बाबा को बहुत पसंद भी आया ,पर दुःख की बात ये है की और पंद्रह दिन पहले यदि पुस्तक मिल जाता तो माँ का भी आशीर्वाद मिल जाता।
विश्व भ्रमण 30 वर्षों में
कभी भी सोचे भी नहीं थे की हम कुछ भी लिखेगें। बाबा के जोश दिलाने पर अपने भ्रमण का संस्मरण लिखना शुरू किये। लिखते -लिखते एक पुस्तक का रूप ले लिया। बस क्या था बाबा अपने पब्लिसर को ही भेज दिए और वह छप कर भी आगया। अपने 30 वर्षो के भ्रमण का कुछ खट्टी -मीठी यादें ,कुछ अनुभव ,जो कुछ नया दिखा बस यही सब लिखे थे। राकेश आईडिया दिया इसका शीर्षक विश्व भ्रमण 30 वर्षों में लीखिए। बस इसी नाम से पुस्तक बन गया।
बाबा को बड़ा मन था की बाबा के जीते जी ये पुस्तक छप कर आजाये जिससे बाबा देख सके। बाबा के रहते पुस्तक आया ,बाबा को बहुत पसंद भी आया ,पर दुःख की बात ये है की और पंद्रह दिन पहले यदि पुस्तक मिल जाता तो माँ का भी आशीर्वाद मिल जाता।
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