लीची
पटरानी की मेहरबानी
सदियों पूर्व लीची केवल दक्षिण चीन के एक कस्बे में होता था।एक बार चीन के बादशाह इस कस्बे के दौरे के बाद राजधानी लौटते समय कुछ लीची, जो की उनके लिये नया फल था. अपने साथ लाकर अपनी सबसे प्यारी पटरानी यांग हुआन को दिया जो उसे बहुत अच्छा लगा।बादशाह ली लोंग ने अपनी पटरानी को अच्छे किस्म की ज्यादा लीची मिले इसलिए इसकी उपज बढ़ाने लोगों को प्रोत्साहन किया और पुरस्कार भी देने लगे। तब से पूरे चीन में उपजाया जाने लगा और लोक प्रिय फल हो गया। चीन से पुरे दुनिया में ही लीची फैला। है ना पटरानी की मेहरबानी किआज हमें भी अच्छे प्रकार का लीची मिल रहा है।
हमलोग भी जब चीन घूम रहें थे तो रोज लीची खाते थे। वास्तव में जब तक चीन नहीं गए थे तबतक पता ही नहीं था की लीची इतना अच्छा गुदे दार मीठा भी होता है।पहले जानते थे गर्म देश का फल है बिहार के मुजफर पुर में ही होता है। बाबा भी दो लीची का पेड़ मुजफर पुर से मंगा कर लगाए थे। उसमें 6 -7 साल बाद फल होना शुरू हुआ ,फल भी बहुत होता था पर चीन जैसा स्वादिस्ट नहीं होता था। एक बार गर्मी में देहरादून जाने का मौक़ा मिला क्या देखते है करीब -करीब हर घर में आम जैसा बड़ा -बड़ा पेड़ है और उसमें लीची भरा हुआ है। इतना बड़ा 15 -20 फिट ऊँचा पेड़ गुलाबी छिलके वालाफलों से भरा हुआ देख कर बहुत आश्चर्य भी हुआ और मजा भी आया।
ऑक्टूबर में लीची में फूल आजाता है और फल धीरे -धीरे होते हुए गर्मियों में जून तक पाक कर लाल हो जाता है। वास्तव में बाहर जा कर नहीं देखते तो पता ही नहीं चलता की लीची बिहार का फल है या पटरानी की देन है। गर्मी का महीना है रायपुर में भी बहुत मिलता है ,आज कल रोज खा रहें है तो बस पूरा कहानी और सब बात लीची के सम्बन्ध में याद आ गया। शायद आप लोंगो को भी पढ़ करकुछ मजा आजाये।
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