शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

DIL BAG BAG HO GAYA

                                                                   दीदी का बाग

        बहुत दिनों से दीदी अपना खेत घुमने बुला रही थी पर मौका ही नहीं लग रहा था।इस बार आखिर ठंड में खेत घुमने का मौका मिल ही गया। अब बाग -बगीचा तो देखने नहीं मिलता है नगरों में दूर -दूर तक कांक्रीट का जाल ही दिखता है। दीदी के बाग मै दूर-दूर तक हरियाली ही देखने मिला। मन प्रशन हो गया दिल खुश हो गया। 
             जहाँ नजर दौड़ाओ गोभी ही गोभी ,तरह -तरह के ठंड के साग सब्जी। खेत में बोरिंग का पानी कल कल बह रहा है। बगुला ,चिड़ियाँ बेखौफ  घूम रही है। इतना सुन्दर प्रक्रिति नजारा देख कर सचमुच दिल बाग -बाग हो गया। 


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